कलियुग की समाप्ति पर दुष्टों के संहार और धर्म की स्थापना के लिए भगवान लेंगे यह अवतार

भगवान श्री हरि विष्णु के दसवें अवतार माने जाने वाले कल्कि भगवान की जयंती सावन मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार भगवान कल्कि का अवतार कलियुग की समाप्ति और सतयुग के आरंभ के संधिकाल में होगा। माना जाता है कि यह भगवान का अंतिम अवतार होगा। इसके पश्चात नई सृष्टि की रचना होगी।
कलियुग में पाप की सीमा पार होने पर दुष्टों के संहार के लिए कल्कि अवतार होगा। यह पापियों का संहार करेंगे और साधु-संतों एवं पवित्र मन वाले लोगों की रक्षा करेंगे। इनके सभी भाई देवताओं के अवतार होंगे और धर्म की स्थापना में सहयोग देंगे।
भगवान का यह अवतार निष्कलंक भगवान के नाम से पूरे विश्व में जाना जाएगा। भगवान कल्कि के पिता भगवान श्री हरि विष्णु के भक्त होंगे। वह वेद-पुराणों के ज्ञाता होंगे। कल्कि अवतार में भी भगवान चार भाई होंगे। अपने भाइयों के साथ मिलकर भगवान धर्म की स्थापना करेंगे। भगवान परशुराम उनके गुरु होंगे। दुनियाभर में उनके आगमन की प्रतीक्षा में यह त्योहार कल्कि जयंती के रूप में मनाया जाता है। कल्कि जयंती के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। श्रीहरि का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें। घर के मंदिर में भगवान श्री हरि विष्णु को पंचामृत से फिर गंगाजल से स्नान कराएं। धूप-दीप प्रज्जवलित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। कल्कि भगवान 64 कलाओं से युक्त होंगे। भगवान कल्कि सफेद घोड़े पर सवार होकर पापियों का नाश कर फिर से धर्म की रक्षा करेंगे। भगवान कल्कि मनुष्यों के दिलों में भक्ति का भाव जगाएंगे। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु का ध्यान करें। इस दिन विशेष रूप से ब्राह्मणों को भोजन दान करें।
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