सरई बाजार मे रखें गणेश प्रतिमाओं का सोनगढ़ गोपद नदी में किया गया विसर्जन

सिंगरौली। सरई बाजार में रखें गणेश की प्रतिमाओं का नगर भ्रमण के उपरांत विसर्जन किया गया, सोनगढ़ गोपद नदी में शुक्रवार को देर रात विसर्जन का दौर चलता रहा एवं शनिवार को भी विसर्जन किया गया। इस दौरान पुलिस व्यवस्था चुस्त दुरुस्त दिखी। गणपति बप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आ के जयकारों के साथ गणेश जी का विर्सजन हुआ। इस दौरान सरई क्षेत्र के साथ सरई बाजार मे रखी छोटे बडे साइज एवं सार्वजनिक, पर्सनल घरों में रखें प्रतिमाओं का विर्सजन करने सीधी जिले के आदिवासी विकासखंड कुसमी के भुईमाड़ क्षेत्र अन्तर्गत सोनगढ़ गोपद नदी पहुंचे थे,जहाँ भुईमाड़ थाना प्रभारी आकाश सिंह राजपूत अपने स्टाफ के साथ सुरक्षा व्यवस्था हेतु लगातार उपस्थित थे, एवं सरई पुलिस बल एवं राजस्व अमला उपस्थित रहा, इस दौरान रोहित सोनी (सोनू), आशुतोष गुप्ता (रिंकू),प्रमोद कुमार गुप्ता, (मोनू), प्रदोष गुप्ता, (पी.के) पंडित प्रमोद द्विवेदी, राज गुप्ता, नित्या गुप्ता,शत्रुघन गुप्ता के साथ इत्यादि लोग विसर्जन करने पहुंचे हुए थे, शुक्रवार को अनंत चतुर्दशी होने से इस दिन भगवान अनंत की पूजा के साथ ही इसी दिन गणेश प्रतिमा का विसर्जन भी होता है,गणेश चतुर्थी पर जहा बप्पा को लोगों ने अपने घरों एवं मोहल्लों में सजाया वही उन्हें विदा करने का वक्त भी आता है, जिसे कि गणेश विसर्जन कहा जाता है।
गणपति कहीं एक दिन तो कहीं 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन या पूरे 10 दिन तक विराजते हैं लेकिन कहते हैं ना, जो आता है, वो जाता भी है इसलिए अब उनके जाने का वक्त भी आ गया है। ‘विसर्जन’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है कि पानी में विलीन होना, ये सम्मान सूचक प्रक्रिया है इसलिए घर में पूजा के लिए प्रयोग की गई मूर्तियों को विसर्जित करके उन्हें सम्मान दिया जाता है। गणेश विसर्जन ये सिखाता है कि मिट्टी से जन्में शरीर को मिट्टी में ही मिलना है। गणेश जी की प्रतिमा मिट्टी से बनती है और पूजा के बाद वो मिट्टी में मिल जाती है।,प्रकृति को लौटाना पड़ेगा गणेश जी को मूर्त रूप में आने के लिए मिटटी का सहारा लेना पड़ता है, मिट्टी प्रकृति की देन है लेकिन जब गणेश जी पानी में विलीन होते हैं तो मिटटी फिर प्रकृति में ही मिल जाती है। मतलब ये कि जो लिया है उसे लौटाना ही पड़ेगा, खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना पडेगा। ईश्वर को आकार देते हैं ये धर्म और विश्वास की बात है कि हम गणेश जी को आकार देते हैं लेकिन ऊपर वाला तो निराकार है और सब जगह व्याप्त है लेकिन आकार को समाप्त होना पड़ता है इसलिए’विसर्जन होता है विसर्जन ये सिखाता है कि इंसान को अगला जन्म पाने के लिए इस जन्म का त्याग करना पड़ेगा गणेश जी की मूर्ति बनती है, उसकी पूजा होती है लेकिन फिर उन्हें अगले साल आने के लिए इस साल विसर्जित होना पडता है।
जीवन भी यही है, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कीजिये और समय समाप्त होने पर अगले जन्म के लिए इस जन्म को छोड़ दीजिए। मोह-माया को त्यागो विसर्जन ये सिखाता है कि सांसरिक वस्तुओं से इंसान को मोह नहीं होना चाहिए क्योंकि इसे एक दिन छोड़ना पड़ेगा गणेश जी घर में आते हैं, उनकी पूजा होती है और उसके बाद मोह-माया बिखेरकर वो हमसे विदा हो जाते हैं ठीक उसी तरह जीवन भी है, इसे एक दिन छोड़कर जाना होगा इसलिए इसके मोह-पाश में इंसान को नहीं फंसना चाहिए।