ना-नुकुर के बाद हो ही गई दिग्विजय की एंट्री, गहलोत का हो गया गेम ओवर

भोपाल
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर क्या चला, सियासी तूफान खड़ा हो गया। कांग्रेस आलाकमान भी इस आग को शांत नहीं कर सका तो गेम ही बदल दिया गया। अब मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को केरल से दिल्ली बुलाकर चुनाव लड़ने के निर्देश दिए गए हैं। बताया जा रहा है कि शुक्रवार को वे अपना नामांकन दाखिल कर देंगे। अब सवाल यह उठता है कि क्या दिग्विजय सिंह की एंट्री के बाद अब तक दावेदारी कर रहे शशि थरूर और अशोक गहलोत के लिए कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी की रेस का गेम ओवर हो गया है? अशोक गहलोत के यह कहने के बाद कि वह अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ना चाहते, दिग्विजय सिंह का अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा है।
अखिल भारतीय कांग्रेस यानी INC के अध्यक्ष के चुनावों में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम आगे चल रहा था। हालांकि, राजस्थान में उनके समर्थक विधायकों ने जिस तरह के हालात बनाए, उससे पार्टी की किरकिरी हुई। खासकर आलाकमान की किरकिरी हुई। भले ही इसे अशोक गहलोत का जादू और मुख्यमंत्री की कुर्सी के प्रति उनका प्रेम बताया जा रहा हो, आलाकमान उनसे नाराज है। गुरुवार को गहलोत और सोनिया गांधी की मुलाकात हुई। गहलोत ने कहा कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी नामांकन भरने की बात कह चुके हैं। ऐसे में दिग्विजय सिंह को बुलाकर आलाकमान ने गेम ही बदल दिया है।
पहले भी दावेदारी की थी दिग्विजय सिंह ने
कुछ दिन पहले भी दिग्विजय सिंह ने यह बयान देकर चौंका दिया था कि वे पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, जबलपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई तो उसमें साफ कर दिया कि वह ऐसा नहीं कर रहे। हालांकि, ना-नुकूर के बाद अब उनकी दावेदारी ने समीकरण बदल दिए हैं। अब सूत्र बता रहे हैं कि मध्यप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह कुछ विधायकों के साथ दिग्विजय सिंह के प्रस्तावक बन सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो दिग्विजय सिंह के जीतने की संभावना बढ़ जाएगी।
गांधी परिवार के विश्वासपात्र नेता
दिग्विजय सिंह 1987 से ही गांधी परिवार के करीबी रहे हैं। राजीव गांधी की मौत के बाद वह सोनिया गांधी के विश्वासपात्र बने। इसके बाद राहुल गांधी के राजनीति में आने के बाद वह उनके मार्गदर्शक बने। कांग्रेस में कई नेताओं ने पार्टी के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन दिग्विजय सिंह हमेशा गांधी परिवार और पार्टी के साथ खड़े रहे। साथ ही वह विरोधियों के खिलाफ खुलकर बोले भी। ऐसे में गांधी परिवार के लिए उनका चुनौती बनने की संभावना कम है।
दिग्विजय इसलिए मजबूत नेता
मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और लंबे समय से दिग्विजय सिंह की सियासत के गवाह रहे प्रभु पटैरिया कहते है कि दिग्विजय सिंह स्वाभाविक रूप से पॉवरफुल हैं। वह अल्पसंख्यकों के साथ ही हिंदुओं को भी साथ लेकर चलते हैं। वह अल्पसंख्यकों के हितों का ख्याल रखते है। अल्पसंख्यकों की 20 प्रतिशत आबादी है। अब सपा, बसपा जैसी पार्टियों से मुस्लिमों का जुड़ाव खत्म हो रहा है। दिग्विजय सिंह के अध्यक्ष बनने पर कांग्रेस को अल्पसंख्यकों के वोटबैंक का फायदा मिल सकता है।
राजा का ग्राउंड कनेक्ट जबरदस्त
दिग्विजय सिंह का काम करने का अपना एक खास तरीका है। प्रदेश में वह कांग्रेस के एकमात्र नेता है, जिनका नेटवर्क आज भी नीचे तक है। दिग्विजय सिंह कई राज्यों के प्रभारी रहे हैं। उनके विपक्ष के अलावा एनडीए गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेताओं से भी संबंध अच्छे है। इसका भी कांग्रेस को फायदा मिलेगा। आज के समय विपक्षी नेताओं को साथ लेकर चलने और बीजेपी को जवाब देने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के दावेदारों में दिग्विजय सिंह ही सबसे मजबूत दिखते है।
पॉलिटिकल मैनेजमेंट जबदस्त
दिग्विजय सिंह के बारे में कहा जाता है कि वह कोई भी बात बिना तथ्यों के नहीं कहते हैं। उनका पॉलिटिकल मैनेजमेंट जबदस्त है। वह हर राजनीतिक चुनौती के लिए हमेशा तैयार रहते है। यह उन्होंने कई बार साबित भी किया है। जो 2024 के चुनाव के लिए कांग्रेस के लिए बहुत जरूरी है।
राजनीति का लंबा अनुभव
दिग्विजय मध्यप्रदेश में दस साल मुख्यमंत्री रहे। उनके पास ऑल इंडिया कांग्रेस का महासचिव रहते कई राज्यों का प्रभार भी रहा। इनमें असम, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गोवा और बिहार राज्य शामिल है। इनमें कई जगह उनके समय सरकार बनी तो कहीं कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा। अभी राहुल गांधी की भारत जोड़ा यात्रा की प्लानिंग दिग्विजय सिंह ने ही की है, जिसे भारी समर्थन मिल रहा है।
यह है कमजोर पक्ष
दिग्विजय सिंह अल्पसंख्यकों हितों को लेकर खुलकर बोलते है। इसे उनकी कमजोरी और मजबूती दोनों ही कहा जा सकता है। कमजोरी ज्यादा है। दरअसल, बीजेपी को हिंदुत्व को एकजुट करने का मुद्दा मिल जाएगा। कई बार उनके बयानों को लेकर उन पर बीजेपी के साथ ही कांग्रेस के कुछ नेता भी हमलावर होते रहे हैं। इसका खामियाजा पार्टी को वोट कटने के रूप में उठाना पड़ा है। उन पर श्रीमान बंटाढार का टैग भी भाजपा ने लगाया हुआ है।