प्रेमचंद की कहानी कफ़न ने किया मंत्रमुग्ध

सीधी
संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से ज़िले के वरिष्ठ रंगकर्मी स्व. अशोक तिवारी को समर्पित चार दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह का “रंग अशोक” आयोजन रंगदूत द्वारा किया जा रहा है। इस चार दिवसीय आयोजन में 21 नबम्बर की रात को इमेजिनेशन,पटना ,बिहार की प्रस्तुति “कफ़न” नाटक का मंचन हुआ । जिसका निर्देशन कुंदन कुमार ने किया है । नाटक के पूर्वरंग में रंगदूत की प्रस्तुति जमराज का नेउता किया गया जिसका निर्देशन युवा कलाकार शुभम सोनी ने किया है नाटक कफ़न नाटक की कहानी की शुरुआत झोंपड़े के द्वार से होती है जहाँ पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव वेदना से पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों की रात थी, प्रकृत्ति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गाँव अंधकार में लय हो गया था।
जब निसंग भाव से कहता है कि वह बचेगी नहीं तो माधव चिढ़कर उत्तर देता है कि मरना है तो जल्दी ही क्यों नहीं मर जाती देखकर भी वह क्या कर लेगा। लगता है जैसे कहानी के प्रारंभ में ही बड़े सांकेतिक ढंग से प्रेमचंद इशारा कर रहे हैं और भाव का अँधकार में लय हो जाना मानो पूँजीवादी व्यवस्था का ही प्रगाढ़ होता हुआ अंधेरा है जो सारे मानवीय मूल्यों, सद्भाव और आत्मीयता को रौंदता हुआ निर्मम भाव से बढ़ता जा रहा है। कफन एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की कहानी है जो श्रम के प्रति आदमी में हतोत्साह पैदा करती है क्योंकि उस श्रम की कोई सार्थकता उसे नहीं दिखायी देती है। क्योंकि जिस समाज में रात-दिन मेहनत करने वालों की हालत उनकी हालत से बहुत कुछ अच्छी नहीं थीं और किसानों के मुकाबले में वे लोग, जो किसानों की दुर्बलताओं से लाभ उठाना जानते थे, कहीं ज्यादा संपन्न थे, वहाँ इस तरह की मनोवृत्ति का पैदा हो जाना कोई अचरज की बात न थी। मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानी ‘कफन’ के माध्यम से असहाय वर्ग की आशाहीन स्थिति को जन-जन तक पहुँचाया है। जो लाचार वर्ग यह सोचता है कि भूख और अभाव के कारण कई बार रोटी मिलना मुश्किल है, वह अपने संबंधों के प्रति अपनी संवेदना खो देता है। मुंशी प्रेमचंद ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि जब तक आम जनता में असमानता की जीत नहीं होगी, तब तक असहायों का दुरुपयोग नहीं रुकेगा, उनकी लाचारी नहीं मिटेगी, तब तक उनमें जीत की कठोरता की भावना समाप्त नहीं होगी।
इस नाटक में मुख्य रूप से,नंदकिशोर,सौरभ सागर,महेंद्र कुमार,शवदाहज्जू ,रौशन कुमार (लाइट) आदि ने प्रभावी अभिनय किया।दर्शकों को भाव विभोर करने में नाटक पूरी तरह सफल रहा वहीं दर्शकों ने नाटक की भरपुण प्रशंसा की, रंगदूत को दर्शकों का अपार स्नेह मिलता रहा है,और लगभग 80 से अधिक दर्शकों ने टिकट लेकर नाटक देखा । अंत मे वरिष्ठ साहित्यकार जे पी मिश्रा ने कुंदन कुमार को स्मृति चिन्ह और गुलदस्ता भेंट किया ।संस्था के प्रमुख प्रसन्न सोनी ने बताया कि चल रहे इस चार दिवसीय आयोजन का समापन भोपाल की टीम व देश के जाने माने निर्देशक संजय मेहता के नाटक ‘हसीना मान जायेगी’ के साथ किया जायेगा ।