मध्य प्रदेश

मीनू तो दूर भोजन ही नहीं पहुंच रहा

आंगनवाड़ी केन्द्रों में ताले लटके, सरकारी धन का जम कर दुरूपयोग

 

काल चिंतन कार्यालय
वैढ़न,सिंगरौली। एकीकृत महिला बाल विकास योजना के तहत तीन से छ: वर्ष के बच्चों के पोषण आहार पहुंचाने की व्यवस्था आंगनवाड़ी केन्द्रों में की गयी है। इसके लिए भोजन बनाने तथा पहुंचाने की जिम्मेदारी महिला स्व-सहायता समूहों को दी गयी है। उक्त प्रक्रिया में भयंकर दोष परिलक्षित हो रहा है। समूहों द्वारा मीनू के अनुसार भोजन परोसने का सरकारी निर्देश है। लेकिन मीनू तो दूर आंगनवाड़ी केन्द्रों में खाना ही नहीं पहुंच रहा है। आंगनवाड़ी केन्द्रों में खाने की जगह पर खानापूर्ति की जा रही है।

काल चिन्तन टीम द्वारा सामान्य सर्वेक्षण के दौरान जो दृष्य सामने आये वह चौकाने वाले हैं। सरकार का निर्देश है कि सुबह नौ बजे बच्चों को नाश्ता तथा बारह से एक बजे के बीच उन्हें भोजन मीनू के अनुसार पहुंचाया जाये। आंगनवाड़ी केन्द्रों में स्व-सहायता समूहों द्वारा कभी भी नाश्ता नहीं पहुंचाया जाता है। कभी हलुआ के नाम पर अपोषित मटेरियल दे दिया जाता है। वो भी भोजन के समय के साथ ही दिया जाता है। जिससे नाश्ते की परिकल्पना बेमानी सिद्ध हो रही है। कभी-कभी नाश्ते के नाम पर एक दो, पांच रूपये वाले बिस्किट के पैकेट आंगनवाड़ी केन्द्रों में पहुंचा दिये जाते हैं। जबकि नाश्ते में हलुआ, पोष्टिक खिचड़ी आदि पहुंचाने का निर्देश है। नाश्ते का सारा पैसा स्व-सहायता समूहों के पाकेट में जाता है। अब यदि भोजन की बात करें तो हफ्ते में एक दिन चावल, दाल और वह भी अपर्याप्त मात्रा में पहुंचा दिया जाता है। बताते हैं कि समूहों के संचालक छोटा कंटेनर लेकर स्कूटी से आंगनवड़ी तक पहुंचते हैं। अब एक छोटे कंटेनर में कितना भोजन हो सकता है यह अनुमान लगाया जा सकता है।
सिंगरौली शहर के मुहेर इलाके में पाँच से छ: आंगनवाड़ी केन्द्र हैं जहां सूत्रों ने तीन महीने से खाना न पहुंचाने की बात कही। यह शहर से कटा हुआ लगभग ग्रामीण इलाका है। यहां कुपोषित गरीब छोटे बच्चे स्कूलों में नहीं जा सकते। यहां सरकार की योजना सच्चे मायने में फलीभूत हो सकती है परन्तु महिला एवं बाल विकास विभाग नहीं चाहता की केन्द्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना फलीभूत हो सके।
आंगनवाड़ी केन्द्रों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा चालिस से लेकर डेढ़ सौ तक की बच्चो की लिस्ट दिखायी जाती है। फिर उन्हीं के द्वारा बताया जाता है कि दस से पंद्रह बच्चे ही उपलब्ध हो पाते हैं। समूहों द्वारा चालिस से पचास बच्चों की बिल बनाये जाने की खबर है। इस प्रकार समूहों के द्वारा किये जा रहे गोरखधंधे में महिला एवं बाल विकास विभाग के जिम्मेदारों की मिलीभगत से लाखों रूपये का नाजायज धंधा प्रतिमाह किया जा रहा है।

सर्वेक्षण के दौरान जिन समूहों का नाम सामने आया वे मनोकामना स्व-सहायता समूह, आनंद भवानी स्व-सहायता समूह, ऊँ साईं स्व-सहायता समूह, शीला महिला स्व-सहायता समूह, गायत्री महिला स्व-सहायता समूह, मालती महिला स्व-सहायता समूह, ज्वाला महिला स्व-सहायता समूह, बरक्कत महिला स्व-सहायता समूह आदि बताये जाते हैं। ये सब समूह भरूहां, बनौली, नजीवन बिहार, सरसवाह, हिर्रवाह, सिंगरौलिया, पंजरेह, जयंत आदि में संचालित आंगनवाड़ी केन्द्रों में भोजन पहुंचाने का काम करते हैं।

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