मुआवजा निर्धारण में धांधली का आरोप
एनसीएल की जयंत खदान का मामला, दर्जनों विस्थापितों ने कलेक्टर से की शिकायत

काल चिंतन कार्यालय
वैढ़न,सिंगरौली। एनसीएल की जयंत परियोजना के विस्तार के कारण मेढ़ौली के मूल निवासी-आदिवासी उजड़ रहे हैं। उनकी जमीनें ले ली गयी हैं। मकान धराशायी किये जा रहे हैं। सरकारी अमला तथा एनसीएल के अधिकारियों द्वारा मुआवजे का निर्धारण हो रहा है। मुआवजा निर्धारण के सवाल पर स्थानीय मेढ़ौली निवासी काफी असंतुष्ट हैं। उन्होने कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर अपनी शिकायत दर्ज करायी। कलेक्ट्रेट परिसर में काल चिन्तन से बात करते हुये उन्होने बताया कि २०१० से विस्थापन हो रहा है। २०११ में धारा ९ लगायी गयी इसके बाद जमीन की नापी शुरू की गयी है। २०१३ तक जमीन की नापी की गयी उसमें अभी भी दो सौ गज विवाद में है। जिसकी नापी नहीं की गयी। जिस समय नापी की जा रही थी उस समय भूमि स्वामियों ने कम मापन की शिकायत दर्ज करवायी थी। जिसमें कुछ के साथ तो सुधार किया गया लेकिन कुछ के साथ सुधार नहीं हुआ।
ग्रामीणों की शिकायत है कि एनसीएल के अधिकारी मुआवजा निर्धारण में बहुत ही धंाधली कर रहे हैं। ४०६८ रूपये के हिसाब से संपत्ति का मूल्यांकन करना था जिसमें कई अनपढ़ भूमि स्वामियों के साथ कथित रूप से धोखाधड़ी की गयी। उन्हें २०१३ के हिसाब से मुआवजा बनाकर दिया गया। मजे की बात यह है कि मेढ़ौली के आदिवासी सौ फीसदी गरीब और अनपढ़ हैं। एनसीएल के अधिकारी उनसे कागज पर अंगुठा लगवा लेते हैं उसके बाद मनमाने ढंग से मुआवे का निर्धारण करते हैं। शिकायत करने पर जवाब यह होता है कि यह अंगुठा लगा हुआ है। यह तो स्वीकृति है। अब अनपढ़ को क्या पता कि अंगूठा किस राशि पर लगाया जा रहा है। इस तरह बड़े पैमाने पर दर्जनों लोगों के साथ एनसीएल के अधिकारियों ने धोखाधड़ी की है। ग्रामीणों ने बताया कि निचले स्तर के जो कर्मचारी हैं उनके द्वारा ऐसा किया जा रहा है लेकिन उच्च अधिकारियों की भी इसमें सहमति होती है।
एनसीएल द्वारा अभी तक जितना भी विस्थापन किया गया सभी में इस तरह की बात कुछ न कुछ विद्यमान रही है। अभी भी लोग वर्षों पूर्व हुये विस्थापन के मामलों में एनसीएल के दफ्तरों में भटक रहे हंै। वही प्रक्रिया मेढ़ौली के विस्थापन में भी दोहराई जा रही है।