मध्य प्रदेश

इनपर क्यों नहीं लागू होता स्थानांतरण का नियम?

 

काल चिंतन कार्यालय
वैढ़न,सिंगरौली। मध्य प्रदेश शासन की स्थानांतरण नीति है। उसके तहत प्रदेश में सारे शासकीय कर्मचारियेां का स्थानांतरण होता है लेकिन शासन की यह स्थानांतरण की नीति सिंगरौली के नगर निगम पर लागू होती हुयी नजर नहीं आ रही है। क्योकि यहां पदस्थ आधे दर्जन अधिकारी शुरू से अंत तक यहीं जमे हुये हैं। कई लोगों का चन्द वर्षों बाद सेवानिवृत्ति होने वाली है। लेकिन इनके कार्यकाल में जो भी सरकारें आयीं इनको कोई टस से मस नहीं कर सका।

व्ही.पी.उपाध्याय, आर.पी.वैश्य सहित आधा दर्जन अधिकारीस्तर के लोगों का यहां स्थापना से लेकर अभी तक स्थानांतरण नहीं हुआ। जबकि अन्य विभागों में लोग आते जाते रहे हैं। वैसे सिंगरौली में स्थानांतरण नीति की कई बार धज्जियां उड़ी हैं। पुलिस विभाग में पदस्थ कई कर्मचारी एवं थाना प्रभारी स्तर के लोगों का यहां से स्थानांतरण हुआ लेकिन चन्द दिनों बाद वह सिंगरौली में धमक गये। पुलिस विभाग में एक आरक्षक से लेकर टीआई तक के स्थानंातरण के मामलों में सरकार की नीतियों की धज्जियां उड़ती दिखायी दे रही हैं।
व्ही.पी.उपाध्याय और आर.पी. वैश्य नगर पालिक निगम सिंगरौली में दो ऐसे नाम हैं जिनको स्थानांतरण के नाम पर कोई अभी तक हिला नहीं पाया है। क्षेत्र में चर्चाएं हंै कि इन दोनों अधिकारियों के रिश्तेदारों के नाम कई प्रापर्टी है। समय समय पर नगर निगम के नियम को धता बताकर इनके रिश्तेदार नगर निगम में ठेकेदारी करते रहे हैं। बाला कास्ट्रक्शन व्ही.पी.उपाध्याय के सगे भाई हैं जो नगर निगम में ठेेकेदारी करते हैं जो की नियम विरूद्ध है।

क्षेत्र में चर्चा है कि व्ही.पी.उपाध्याय के बेटे की एक दुकान है जो इलेक्ट्रिकल आईटम की सप्लाई करती है। चूंकि व्ही.पी.उपाध्याय इलेक्ट्रिकल के एसडीओ रहे हैं इसलिए सारा सामान इनके बेटे के दुकान से आता रहा है। ये जग जाहिर है कि नगर पालिक निगम सिंगरौली में कमीशनखोरी का भयंकर आलम है। अपने पद के प्रभाव को लेकर अनियमितता करने का उदाहरण देखा जा सकता है। आर.के.जैन निलंबित हुये ठीक से जांच नहीं हुयी नहीं तो इनके पुत्र जो कि निविदा एजेेंसी के सर्वेसर्वा थे उनके द्वारा बिल प्रस्तुत करने पर सारा बिल आर.के.जैन द्वारा ओके कर दिया गया था। वास्तव में आर.के.जैन क प्रकरण अभी भी जांच का विषय है। व्ही.पी.उपाध्याय और आर.पी.वैश्य नगर पालिक निगम में कैसे पदस्थ हुये यह भी एक रोचक कहानी है। एक सरकारी मास्टर कैसे नगर निगम का अधिकारी बना यह भी जांच का विषय है।

व्ही.पी.उपाध्याय तथा आर.पी.वैश्य के अलावा सलील सिंह, अजय सिंह (प्रिस), एस.एन.द्विवेदी, आर.पी.शर्मा आदि ऐसे नाम हैं जो सिंगरौली में पदस्थ होने के बाद कभी स्थानांतरित नहीं हुये। सरकार की स्थानांतरण नीति इनके लिए बेमानी साबित हुयी।
इस सवाल को काल चिन्तन ने प्रभारी मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह के सम्मुख रखा था। प्रभारी मंत्री ने जवाब में कहा था कि जिले का कोई भी जनप्रतिनिधि इनकी शिकायत नहीं करता, इसलिए इनका स्थानांतरण नहीं होता। नगर निगम से पर्याप्त धन इक_ा करने के बाद जनप्रतिनिधियों को प्रसन्न करना कोई कठिन बात नहीं है। राजनीत में सबकुछ जायज है।

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