एनसीएल: नदी नहीं समंदर है, डुबकी लगाईये

काल चिंतन कार्यालय
वैढ़न,सिंगरौली। एनसीएल कोल इंण्डिया का कमाऊ पूत है। उत्पादन का जो लक्ष्य दिया जाता है उससे एक कदम आगे रहता है। सिंगरौली की धरती माँ बहुत उर्वरा वाली है। अपनी छाती को फाड़कर कोयला उगल रही है। अब माता ठहरी, पुत्रों को भरपूर काला सोना प्रदान कर रही है। कोयले का समंदर तैयार हो गया है। पुत्रों को इजाजत है चाहे जितना डुबकी लगाना है लगा लें।
हम आपसे छायावाद में बात नहीं कर रहे हैं। या एक छायावाद की प्रेक्टिस नहीं है। आपसे हम हकीकत बयान कर रहे हैं। एनसीएल में जो भ्रष्टाचार का समंदर बह रहा है उसमें स्नान के पुण्य को खोना किसी को गंवारा नहीं है। भ्रष्टाचार की शिक्षा भी यहीं मिलती है, यहीं वो पनपता है और यहीं वह फलता-फूलता भी है। एक मजदूर से लेकर के शीर्ष अधिकारी तक किसी को छांटा नही जा सकता। मैं नहीं कहता की सब उसी में सने हैं लेकिन जो चैनल से कटे हैं उनकी संख्या नगण्य है। जबसे एनसीएल शुरू हुआ है तबसे वह कई पारी खेल चुका है। कई बैच आये और गये, अभी जो वर्तमान में हैं उनका प्रदर्शन तो अच्छा है लेकिन सिक्के के दूसरे पहलु को भी नकारा नहीं जा सकता। इस समय नयी पीढ़ी आ रही है। मैनेजमेंट कोर्स करके, आईआईटी करके युवक आ गये हैं। लेकिन उनको रहने की समुचित व्यवस्था नहीं है। हास्टलों में रहते हैं। हास्टल का संचालक अगर ठीक से खाना नहीं देता तो बच्चे कुछ बोल नहीं पाते। क्यों बोल नहीं पाते? क्योंकि हास्टल का संचालक साहबों की सेवा में रहता है। पर्सनल विभाग के प्रबंधकों की सेवा करता है। जहां महाप्रबंधक हैं उनकी जरूरतों को ध्यान में रखता है। कब मछली चहिए, कब चिकन चाहिए, कब मटन चाहिए, सबके लिए सतर्क रहता है। फिर न्यूकमर की चिंता वह क्यों करे? खाना हो तो खाओं नहीं भाड़ में जाओ। बस भ्रष्ट आचरण की शुरूआत यहीं से होती है। यहीं से मन की दीवार पर भ्रष्टाचार का बीज उगता है। आईटी, आइआईटी, बिजनेस मैंनेजमेंट करके कोल इण्डिया में नौकरी करने का स्वणर््िाम सपना देखकर आया हुआ युवक यहाँ आकर क्या पाता है। आफिस में उसे कुर्सी दे दी जाती है, अलग-थलग। बाबुओं के साथ बैठता है, क्योंकि अभी वह चिरपरिचित चैनल में शामिल नहीं है। साल छ: महीने बीतते हैं। समय का चक्का चलता है और वहीं युवक फिर कुर्सी पर आकर बैठ जाता है। अब वह खास कुर्सी पर बैठकर क्या करेगा? उससे क्या उम्मीद की जा सकती है? मन की दीवार पर जो पौधा उगा था वह वृक्ष बनने जा रहा है। वह वही शुरू करेगा जो उसके पुर्ववर्ती साहब लोग करते थे। यह एनसीएल के प्रबंधन का मनोविज्ञान है।
रात भर कोल डिस्पैच होता है। उत्पादन और सम्प्रेषण अच्छी बात है। डम्पर कोयला लोड करके कांटे पर आता है। वहां तीन से लेकर चार स्टाफ होते हैं। कांटा बाबू, एक दो और तथा दो सिक्योरिटी गार्ड मौजूद रहते हैं। डम्पर कांटे पर चढ़ा, वजन हुआ और चला गया। डम्प में जाकर के अनलोड किया। कभी पूरा कोयला गिरा तो कभी आधा गिर गया। लौटते समय जो भूतपुर्व सैनिक गार्ड की ड्यूटी पर रहता है वह हर वाहन पर चढ़कर नहीं देखता की गाड़ी खाली है या भरी है। फिर अधखाली डंपर उसे नीयत स्थान पर ले जाकर गिरा देता है। मैं एक संभावना की बात कर रहा हूं। अगर कोई गार्ड ईमानदारी में रहा तो उसे चैनल में लाने के लिए समझाया जाता है। बीस हजार रूपये की नौकरी है तुम्हारा क्या जाता है। सागर से एक चुल्लू तुम भी पी लो। पर गाड़ी पांच सौ रूपया ले लो। गार्ड समझ जाता है तो गोरखधंधा चलता रहता है। नयी पीढ़ी भी उसी तर्ज पर चल रही है और नप भी रही है। एनसीएल में दो बार लोकायुक्त ने दो जवानों को दो परियोजनाओं से सुविधा शुल्क लेते पकड़ा। लोकायुक्त की कार्यवाही को अगर सीख मान लिया जाये तो गोरखधंधे पर लगाम लग सकी है लेकिन शेर के मुंह में जब खून लग जाता है तो वह नरभक्षी हो जाता है।
एनसीएल में सभी परियोजनाओं में प्राईवेट सिक्योरिटी तैनात है। एनसीएल की भी सिक्योरिटी है। डीजल और कबाड़ धड़ल्ले से निकल रहा है। क्या यह धंधा परियोजना के जिम्मेदार लोगों की जानकारी में नहीं है? है, परन्तु नीचे से ऊपर तक लोग सिस्टम से बंधे हुये हैं इसलिए धंधा चल रहा है। परियोजनाओं की खदानों में जब शिफ्ट चेंज होता है तो एक घण्टे का गैप मिलता है। इसी गैप में खड़ी गाड़ियों से डीजल निकलता है तो यह किसके इशारे पर निकलता है। क्या यह जानकारी एजीएम माइंस से लेकर अन्य अधिकारियों को नहीं होती। नियम तो यह हैकि लॉगबुक हर पाली में लिखी जानी चाहिए लेकिन एनसीएल में लॉगबुक एक महीने में एक बार लिखी जाती है और साहब की दस्तखत हो जाती है।
एनसीएल की सिक्योरिटी के एक हवलदार से लेकर अधिकारी तक का ट्रांसफर और पोस्टिंग का पॉवर डायरेक्टर पर्सनल के पास होता है जबकि चीफ सिक्योरिटी की एनसीएल मुख्यालय में पोस्टिंग है। विभाग के एक सक्षम अधिकारी के मौजूद रहने पर भी वह सुरक्षा विभाग का संचालन अपने अनुभवों से नहीं कर सकता। एनसीएल प्रबंधन की चिरपरिचित कार्य संस्कृति उसके आड़े आती है। ट्रेड यूनियन के नेता पहुंचते हैं। साहब हमारा आदमी है, कंडीडेट खुद पहुंचकर चरण छूता है, साहब वहीं रहने दीजिये। यही कारण है कि दो दो, तीन तीन बार स्थानांतरण होने के बाद भी कई लोग वहीं जमें हुये हैं।
कहते हैं देश में प्र्रजातंत्र है लेकिन एनसीएल में तो ऐसा कोई तंत्र नही है। यहां तो तानाशाही दिखती है। सीएमडी की इच्छा ही यहां कानून लगता है। किसको पावर दिया जाये, किसका छीन लिया जाये, कौन लूप लाईन में रहेगा। कौन फ्रंट में रहेगा। यह सब शीर्ष प्रबंधन की इच्छाओ के कानून पर निर्भर करता है।
क्रमश: