मध्य प्रदेश

श्रीकृष्ण का प्रगटोत्सव धूम धाम से मनाया गया

पूजा पार्क की कथा का चतुर्थ दिवस

भक्तों के कल्याण हेतु कन्हैया को प्रगट होना पड़ा है-बाला व्यंकटेश

सीधी
श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन ब्यासपीठ की मंत्रोच्चारण के साथ प्रमुख यजमान द्वारा पूजा अर्चन की गई तत्पश्चात सुरेन्द्र सिंह बोरा,डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस,कुमुदिनी सिंह, लाल मणि सिंह अधिवक्ता ,अंजनी सिंह सौरभ ,डाॅ आई पी गौतम आदि ने कथा प्रबक्ता पं बालाव्यंकटेश महराज वृन्दावनोपासक का माल्यार्पण व पुष्प गुच्छ से स्वागत अभिनन्दन हुआ।कथा के प्रसंग को आरेखित करते हुए महराज जी ने बताया कि धुब जी सुनीति के अनुसार, चल रहे हैं इसलिए उन्हे भक्ति की प्राप्ति हुई क्योंकि जहाॅ धर्म है वही भक्ती है और जहाॅ भक्ति है वहीं धर्म है।फलतः बिना भक्ति के भगवान का दर्शन संभव नही है।ध्रुव जी को भगवान का दर्शन धर्म और भक्ति के कारण ही मिला है।कहने का अभिप्राय यह कि भगवान भक्तों के पीछे पीछे दौड़े चले आते हैं प्रमाण के लिए माॅ सबरी, और भक्त सुतीण तथा तपस्वी ध्रुब जी की धर्म भक्ति अवलोकनीय है। महराज जी ने कहा कि सुनीति का स्नेहाशीष पाकर ध्रुब जैसा साधक धन्य होगया तथा वह अपने माॅ के विमान को अपने विमान से ऊपर चलने हेतु उपक्रम बना लिया। कुल मिलाकर बालक ध्रुव का संकल्प सुदृढ था। उन्होनें यह दृढ निश्चय कर लिया था कि जंगल जाने पर या तो भगवान के दर्शन होंगे या फिर प्राण ही न्योछावर होगा।अंततः भगवान को साक्षात दर्शन देना पड़ा। ध्रुव की इस उपलब्धि से माता सुनीत का बचन भी सिद्ध और सार्थक हुआ। माता सुनीत ने आत्म विश्वास के साथ कहा था कि बेटे तुमको पिता की गोद भले नही दिला पाई किन्तु तुम्हे त्याग तपस्या के बल पर परम पिता परमेश्वर की गोद दिलाकर मानूॅगी। भागवत कथा के प्रखर प्रबक्ता बाला व्यंकटेश जी ने आगे बताया कि जो भगवान के सच्चे भक्त होते हैं वे परमात्मा की हर व्यवस्था में अपने आपको अनुकूलित कर लेते हैं और परमानन्द प्राप्त कर लेते हैं। कथा के विस्तार को आगे बढाते हुए बताया कि भगवान द्वारिकाधीश की दृष्टि नीचे की ओर होती है इसलिए भक्तों को दर्शन करते समय अपनी दृष्टि उनके चरणों में डालनी चाहिए। व्यास जी ने एक नई बात बतायी कि बिट्टल भगवान की दृष्टि नाक पर होती है किन्तु बाॅकेविहारी की दृष्टि भक्तों की ओर होती है इसलिए हमारी दृष्टि भगवान की ओर होनी चाहिए यानी हमारे नेत्र भगवान के नेत्र से मिलना चाहिए। एक और प्रसंग में सन्त तुकाराम का उद्धरण देते हुए महराज जी ने कहा कि एक भक्त भगवान से दस हजार कान का वरदान मागा। प्रथू जी ने कहा कि दो कान में हजार कान यदि होंगे तो हम भगवान की कथा हजारो गुना अधिक सुन सकेंगे । फलतः हमे एक अद्भुत भक्ती मिलेगी और तब कथा से मेरी व्यथा भी दूर हो जायेगी।महराज जी ने कहा कि सन्त और भक्त कथा में तब नाचते हैं जब उनके हृदयस्थल की भक्ती हिलोरे लेने लगती है। व्यास जी ने यह भी बताया कि हमारे मन का देवता चन्द्रमा होता है जिसका निवास अमावस्या के दिन वृक्षों में होता है। अतएव इस दिन तो किसी भी हालत में पेड- पौधों को नही काटना चाहिए नही तो अनिष्ट हमें कष्ट पहुॅचानें मे बिलम्ब नही करेगा।

कथा के उपसंहार में मंच पर एक दर्शनीय झाॅकी के माध्यम से श्री कृष्ण जी का प्रागट्य हुआ।महराज की गोद में सुप्रतिष्ठित सजीव कन्हैया क्रीडा करते हुए ऐसा सुखाशीष दिया कि सभी भक्तगण जन्मोत्सव में मंत्र मुग्ध होकर झूमने लगे। कन्हैया के जन्म में संगीतज्ञ कलाकारों ने ऐसा मनमोहक भजन छेडा “कन्हैया घर आना रे” “नन्द के आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की ” कि भक्तगण भगवान को नाच नाच कर रिझाने लगे और स्वयं मस्ती में झूमने लगे।अंततः व्यास जी ने कहा कि आॅख की सार्थकता भगवत दर्शन में और कान का महत्व भगवत श्रवण में होता है। आज की कथा का मंचीय अभिनव नितान्त आनन्द दायी और कल्याणकारी रही।आज की भक्ति मूलक सगीतमय भागवत कथा में पं रामबिहारी पाण्डेय, पार्षद विनोद कुमार मिश्र, अनिल पाण्डेय, राजकुमार सिंह तथा बी के सिंह की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।कथा के आयोजक मण्डल ने अधिकाधिक संख्या में उपस्थित होकर कथा श्रवण करने हेतु अपील की है।

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