गारद के साये में विकास यात्रा का फलसफा

काल चिंतन कार्यालय
वैढ़न,सिंगरौली। पुलिस गारद के साये में भाजपा एवं प्रशासन की संयुक्त विकास यात्रा जिले में चल रही है। विकास यात्रा में जो बताया जा रहा है वह यह है कि जिले का कोई कोना अविकसित न रह जाये इसलिए भूमिपूजन, शिलान्यास की धूम मची हुयी है। इसके पहले भी बहुत से भूमिपूजन और शिलान्यास हुये जोकि आज भी धूल फांक रहे हैं। कांग्रेसियों का कहना है कि शासन के पैसे से भाजपा विकास नहीं अपना प्रचार कर रही है।
विकास यात्रा के फलसफे पर जिले के चौराहों, कस्बों, गांव की चौपालों में बहस, मुहासिबे का दौर भी जारी है। दस साल के भीतर शहर और गांव की तस्वीर क्यों नहीं बदली? यह दबी जबान से पूछा जा रहा है। दबी जुबान से इसलिए की क्षेत्र के लोकप्रिय जनप्रतिनिधियों के साथ पुलिस की गारद भी रहती है। जोर से पूछ दिया जायेगा तो हवालात की हवा खानी पड़ सकती है। जिले की जनता से चुने हुये विधायक अपने ही क्षेत्र में अपने कार्यकर्ताओं के साथ जाने से कतरा रहे हैं। विकास की सौगात देने के लिए उन्हें थानेदार का दलबल चाहिए हो रहा है। कहते हैं कि प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अपने गृहग्राम रामनगर आये थे। अब चूंकि पीएम थे इसलिए सुरक्षा की टुकड़ी उनके साथ-साथ चल रहे थे। शास्त्री जी रामनगर में पैदल चल रहे थे। जिन चौराहो, जिन दुकानों पर, जिन सड़को पर प्रधानमंत्री बनने से पहले चले थे वहां उन्हें लुफ्त आ रहा था। चलते-चलते वे अचानक एक गली में मुड़ गये और गारद पीछे रह गयी। थोड़ी देर में वे सामने आये तब तक सुरक्षा व्यवस्था सकते में खड़ी रही। शास्त्री जी का कुछ नहीं बिगड़ा क्योंकि वे सच्चे जनप्रतिनिधि थे। श्वेत परिधान में लिपटे और लक्जरी गाड़ी से वालेंटियरों के हुजूम के साथ चलने वाले सिंगरौली के जनप्रतिनिधि अपने ही लागों से क्यों डर रहे हैं। क्या विकास कार्य करने या शासन द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का वितरण करने में उन्होंने भाई-भतीजावाद किया था? निर्माण कार्यों में लगी सरकारी धनराशि भी क्या श्याह घेरे में चल रही थी? या जो उन्होने चुनाव के वक्त वायदा किया था उसे पूरा करने वे चार साल तक नहीं गये? जो भी हो गांव की चौपालों, कस्बों के चौराहों, शहर की गलियों से ऐसी ही कुछ आवाज सुनाई दे रही है।
बहरहाल शहर के वार्डों में विकास यात्रा गयी। टूटी नालियों, बजबजाती नालियों, टूटी सड़कों, लोगों के घर में घुसते गंदे पानी, बेतरतीब सफाई व्यवस्था ने लगभग हर वार्ड में विकास यात्रा का स्वागत किया। नगर निगम तथा अन्य कई विभागों के भी लोगों को अपना काम काज छोड़कर विधायक जी तथा नेताओं के पीछे-पीछे घूमना पड़ा। जनता के काम एक महीने तक विकास यात्रा के चलते हाशिए पर रहे। जनता जब नगर निगम के आफिस में जाती थी तो अधिकारियों के चैम्बर की सारी कुर्सियां खाली मिलती थी। यह सिलसिला पिछले लगभग एक महीने तक चलता रहा। जिस जनता के लिए विकास यात्रा वार्डांे में घूम रही थी वहीं जनता नगर निगम का चक्कर अपना दु:खड़ा रोने के लिए लगा रही थी। बल के आधार पर कमी का ऐहसास झेल रही पुलिस महकमें को भी अपने रूटीन कार्यों को छोड़कर लोकप्रिय जनप्रतिनिधियों को जनता से बचाने के लिए पूरा दिन वार्डों में या पंचायतों में बिताना पड़ा। थानों की लगभग सब फाइलें जस की तस पड़ी हुयी हैं। न्याय की उम्मीद में बैठे लोग विकास यात्रा के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। पुलिस भी आजिज हो गयी है। एक टीआई ने कहा कि प्रभारी मंत्री के आने पर भी यहां के विधायक अपने क्षेत्रों में टाइम से नहीं पहुंचे। जबकि उन्हें प्रभारी मंत्री के पहले अपने क्षेत्र में मौजूद होना था। फिर भी वे प्रभारी मंत्री की सुरक्षा टुकड़ी के साथ-साथ ही नियत स्थल पर पहुंचे। किस बात का डर है? उसी जनता ने आपको चुना है तो उससे तो दिल का रिश्ता होना चाहिए।
नगर निगम के वार्ड ३९, ४०, ४१ तथा मुहेर आदि वार्डों की तस्वीर जो दस साल पहले थी तकरीबन आज भी वही है। तस्वीरें बयान कर रही हैं कि हालात क्या हैं? इस भूमिपूजन तथा शिलान्यास के बाद शहर तथा गांवों की फिजा बदलने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के नुमाइंदे साल भर के बाद क्या जवाब देंगे? जनता सुनना चाहेगी।