मध्य प्रदेश

रिफरल सेंटर बना ट्रामा सेंटर

जिले की स्वास्थ्य सेवाओ पर उठ रहे सवाल

 

काल चिंतन कार्यालय
वैढ़न,सिंगरौली। उद्योगों की बात हो, राजस्व की बात हो, या बिजली और कोयले की बात हो सिंगरौली जिला सरकारों के टारगेट में रहता है। विकास की गंगा बहाने का दावा सरकार करती रही है लेकिन सिंगरौली के मूल निवासी वायदों और घोषणाओं से बार-बार छले गये। बेरोजगारी, विस्थापन, पर्यावरण प्रदूषण की समस्याएं अपना दायरा बढ़ा रही हैं और सरकार का ध्यान उन योजनाओं पर है जिसके परिणामस्वरूप उन्हें वोट मिलता रहे, वे सत्तासीन बने रहें।

सिंगरौली जिले में विकास को देखा जाये तो मुट्ठी भर का क्षेत्र विकसित हो पाया है। बाकी पंचायतों में आज यहां का मूल निवासी वही जीवन जी रहा है। स्वास्थ्य सेवाएं बदतर हैं। दो सौ बेड की क्षमता वाला जिला चिकित्सालय सह ट्रामा सेंटर जिलेवासियों को स्वास्थ्य सेवाएं समुचित रूप से नहीं उपलब्ध करवा पा रहा है। चाहे जिस भी आर्थिक क्षमता वाला व्यक्ति हो उसे प्राइवेट अस्पतालों, नर्सिंग होमों की शरण लेनी पड़ रही है जहां चन्द दिनों में ही लाखों का वारा न्यारा हो जाता है। इसके लिये गरीब मूल निवासियों को चाहे अपनी जमीन बेचनी पड़े या जेवर बीमारी की एवज में भुगतान किये बिना कोई रास्ता नहीं है।

ट्रामा सेंटर में तैनात एमबीबीएस एमडी डाक्टर ट्रामा सेंटर की सेवा कम अपने प्राइवेट प्रेक्टि में ज्यादा ध्यान देेते हैं। सिविल सर्जन डा. ओझा ने बताया कि प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में मरीज आते हैं। अस्पताल की क्षमता नहीं है कि उन्हें भर्ती कराया जा सके। ऐसी हालत में उनका अन्यत्र जाने के अलावा कोई विकल्प बचता नहीं है। करोड़ो रूपया लगाकर एमबीबीएस एमडी बने डाक्टरों का यह लक्ष्य होता है कि जो उनकी पढ़ाई का खर्चा हुआ है वह कैसे मेंटेन हो। इसके लिए वे जो करते हैं उसे साजिश कहा जा सकता है। ट्रामा सेंटर मे मरीजों को देखा जाता है और उचित सेवा प्रदान करने के लिए अपनी प्राईवेट क्लीनिक का रास्ता दिखाया जाता है। ट्रामा सेंटर में आये गरीब और मध्य श्रेणी के लोग अपने परिजनों के जीवन की रक्षा के लिए कोई भी दाव लगाने के लिए तैयार रहते हैं। सामान्यतया जो प्रकरण सर्जरी के नहीं होते हैं उन्हें सर्जरी का बना दिया जाता है। बनारस या रीवा रिफर करने की बात कही जाती है जब मरीज वहां जाने में सक्षम नहीं बताता तो उसे मनचाही जगहों पर जाने के लिए कह दिया जाता है। जहां वही डाक्टर आकर उसका ऑपरेशन करता है।
बीस हजार रूपया थोड़ी सी बुद्धि लगाने पर एक दिन में प्राप्त हो जाता है। ऐसी घटनायें ज्यादातर प्रसूति प्रकरणों में ज्यादा देखी जाती हैं। ट्रामा सेंटर के डाक्टर ज्यादा समय अपने प्राइवेट क्लीनिक में देते हैं, हाजिरी लगाने ट्रामा सेंटर पहुंच जाते हंै। उन्हें कोई बोलने वाला नहीं है क्योंकि ऊपर से नीचे तक सभी एक ही रंग में रंगे हुये हैं। ट्रामा सेंटर में पैथॉलाजी की व्यवस्था हायर की गयी है। भोपाल की फर्म है जो अपने सारे एसेट्स और टेक्निशियन लेकर आयी हुयी है। ट्रामा सेंटर का आदमी ब्लड का सेंपल लेकर उसे थमा देता है और वह परीक्षण करता है। यही स्थिति सिटी स्कैन में भी देखी गयी है। ट्रामा सेंटर में सोनोग्राफी की मशीन है लेकिन टेक्निशियन नहीं है। इसके लिए भी डाक्टर को बाहर से हायर किया जाता है और इस प्रक्रिया में मात्र प्रसूति महिलाओं को ही अल्ट्रासाउण्ड का लाभ मिल पाता है बांकी मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पाता।

जिले में एक सनसनीखेज आंकड़ा प्राप्त हुआ है उसके अनुसार जिले के अंदर आठ सौ से ज्यादा एचआईवी संक्रमित लोगों की संख्या जीवित अवस्था में है। यह संख्या दोगुनी तिगुनी भी हो सकती है यदि गहराई से जिले में कैम्प लगाकर जांच की जाये। लेकिन सिंगरौली जिले में स्वास्थ्य सेवाओं के मद्देनजर गहराई से चिंतन करने का समय न प्रशासन के पास है और न शासन के पास है। ग्रामीणों को मुफ्त अनाज, ई श्रम कार्ड, संबल बार्ड, लाडली बहना कार्ड देकर सरकार करोड़ो रूपये खर्च कर रही है जिसके पीछे भारतीय जनता पार्टी का मकसद सत्ता हथियाये रहना है। जिला अस्पताल सह ट्रामा सेंटर यदि ५०० बेड का हो जाये तो जिले के गरीबों को बहुत राहत मिल सकती है। लेकिन सरकार की इच्छाशक्ति स्वास्थ्य सेवाओं को सुसज्जित करने में नहीं योजनाओं के मार्फत राजनीति करने में ज्यादा है।

जिले का पर्यावरण प्रदूषण और जानलेवा होता जा रहा है। बेरोजगारी, भूखमरी, नशाखोरी जिले की अहम समस्या है। जिसके चलते स्वास्थ्य सेवाओं की दरकार बढ़ी है। सिक्के के दूसरे पहलू पर देश के कर्णधारों की नजर कब पड़ेगी यह भविष्य बतायेगा।
शेष अगले अंक में

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