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हल्द्वानी रेलवे भूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 50,000 लोगों को रातों रात नहीं उजाड़ा जा सकता

 

दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 7 फरवरी तय की है, साथ ही उत्तराखंड सरकार और रेलवे को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओक की बेंच ने मामले में सुनवाई की.

याचिकाकर्ताओं के वकील कोलिन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि प्रभावित होने वाले लोगों का पक्ष पहले भी नहीं सुना गया था और फिर से वही हुआ. हमने राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग की थी. रेलवे के स्पेशल एक्ट के तहत हाई कोर्ट ने कार्रवाई करके अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि उत्तराखंड या रेलवे की तरफ से कौन है?

रेलवे का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कुछ अपील पेंडिंग हैं. लेकिन किसी भी मामले में कोई रोक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोग कई सालों से वहां रह रहे हैं. उनके पुनर्वास के लिए कोई स्किम? आप केवल 7 दिनों का समय दे रहे हैं और कह रहे हैं खाली करो. यह मानवीय मामला है. कुछ व्यावहारिक समाधान खोजने की जरूरत है.

उत्तराखंड सरकार की तरफ से कौन है? सरकार का स्टैंड क्या है इस मामले में? सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जिन लोगों ने नीलामी में लैंड खरीदा है, उसे आप कैसे डील करेंगे? लोग 50-60 वर्षों से वहां रह रहे हैं. उनके पुनर्वास की कोई योजना तो होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 50,000 लोगों को रातों रात नहीं उजाड़ा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी से कहा कि ऐसा नहीं है कि आप विकास के लिए अतिक्रमण हटा रहे हैं. आप सिर्फ अतिक्रमण हटा रहे हैं.

रेलवे ने अपने जवाब में कहा कि यह फैसला रातों-रात नही हुआ. नियमों का पालन हुआ है. यह मामला अवैध खनन से शुरू हुआ था. याचिकाकर्ताओं के वकील कोलिन ने कहा कि लैंड का बड़ा हिस्सा राज्य सरकार का है. रेलवे की भूमि कम है. जस्टिस कौल ने कहा कि हमें इस मामले को सुलझाने के लिए तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाना होगा. कुछ लोगों के पास 1947 से पहले के भी पट्टे हैं.

याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि इस मामले में कुछ लोगों ने नीलामी में जमीनें खरीदी हैं. लोगों से 7 दिनों में भूमि खाली कराने का फैसला सही नहीं है. इसके साथ सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी और रेलवे और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

याचिकाकर्ताओं की वकील लुबना नाज ने मीडिया को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस जमीन पर कोई निर्माण नहीं होगा. पुनर्वास योजना को ध्यान में रखा जाना चाहिए. स्कूल, कॉलेज और अन्य ठोस ढांचे हैं, जिन्हें इस तरह नहीं गिराया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हमने पहले भी कहा है कि यह रेलवे की जमीन है. हम कोर्ट के आदेश के अनुसार आगे बढ़ेंगे.

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