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जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी कानूनी वैधता, माना सांस्कृतिक विरासत

नई दिल्ली. तमिलनाडु में जल्लीकट्टू (सांडों को काबू में करना), कर्नाटक में कंबाला (भैंसे की दौड़) और महाराष्ट्र के बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों को अनुमति दिए जाने के मामले मे सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला दे दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कानून में किए गए संशोधन को वैध बताया है.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि तीनों राज्यों की ओर से इस संबंध कानून में किए गए संशोधन वैध हैं. इसी के साथ कोर्ट ने इन खेलों को क्रूरता से नहीं संस्कृति से जुड़ा हुआ बताया है. पांच जजों की संविघान पीठ ने तीनों राज्यों में जानवरों से जुड़े खेल को सांस्कृतिक विरासत माना है.

याचिकाकर्ताओं ने इन खेलों की अनुमति देने वाले राज्यों के कानूनों की वैधता को चुनौती दी थी. याचिका में दाना किया गया था कि इन खेलों में पशुओं के साथ क्रूरता होती है. बता दें, 2014 मे सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया था. हालांकि राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संशोधन कर दिया था. वहीं कानून में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने इसमें दखल देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट का कहना है कि जलीकट्टू तमिलनाडु की कल्चरल एक्टिविटी है इसलिए कोर्ट इसमे दखल नहीं देगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में तमिलनाडु के जल्लीकट्टू (सांडों को काबू में करना), कर्नाटक के कंबाला (भैंसे की दौड़) और महाराष्ट्र के बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों को सांस्कृतिक विरासत माना है. इसी के साथ ये कहा कि तमिलनाडु द्वारा किया गया संशोधन अनुच्छेद 15 A का उल्लंघन नहीं करता. बता दें, संविधान पीठ को ये तय करना था कि क्या राज्यों के पास इस तरह के कानून बनाने के लिए “विधायी क्षमता” है, जिसमें जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ अनुच्छेद 29 (1) के तहत सांस्कृतिक अधिकारों के तहत आते हैं और संवैधानिक रूप से संरक्षित किए जा सकते हैं.

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